BA Semester-1 History - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :325
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2628
आईएसबीएन :000000000

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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास के नवीन पाठ्यक्रमानुसार प्रश्नोत्तर

प्रश्न- वैदिक कालीन समाज की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए। 

अथवा

वैदिक कालीन आर्यों के सामाजिक जीवन पर वर्णन लिखिए। 

अथवा

वैदिक समाज और सामाजिक जीवन पर लेख लिखिए।

अथवा

वैदिक काल की सामाजिक मान्यताओं को समझाइए। 

उत्तर-

पूर्व वैदिक कालीन जीवन - वैदिक समाज का संगठन कबीले के रूप में हुआ था। इन कबीलों को जन कहा जाता था। बिल्कुल आरम्भिक दशा में शिकारी मनुष्यों में स्थिर विवाह प्रथा स्थापित न हो सकी थी, अतः स्थिर परिवार का भी विकास न हो सका था। कुछ समय पश्चात् आर्थिक जीवन के विकास के साथ स्थायी विवाह की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई और फिर स्थिर परिवार प्रणाली स्थापित हुई. तत्पश्चात् पितृ सत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था कायम हुई। ऋग्वेद के समय सम्पूर्ण आर्यों का एक वर्ग था। हर एक व्यक्ति को व्यवसाय चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी। एक ही परिवार में वैद्य, कवि और चक्की पीसनेवाले तक होते थे। प्रारम्भ में कोई वर्ग-भेद देखने को नहीं मिलता। ऋग्वेद के दशम मण्डल (पुरुकसूक्त) में विराट-पुरुष की कल्पना की गई है, जिससे चार वर्णों की उत्पत्ति हुई, वैदिक काल में कुल और परिवार बड़े-बड़े दलों में विभक्त थे और उनका निर्माण वर्ण और सम्बन्ध पर होता था। आर्य और दास अलग-अलग थे और बहुतेरे दास या दस्यु ही बाद में शूद्र कहलाए, ऐसा अनुमान लगाया जाता है। राज परिवार के लोग राजन्य या क्षत्रिय, पुरोहितों के वंशज ब्राह्मण और साधारण लोग वैश्य कहलाते थे। 'पुरुष सूक्त' में कहा गया है, “जब उन्होंने आदि पुरुष को विभाजित किया, तब ब्राह्मण उसका मुख था, राजन्य उसकी भुजा था, वैश्य उसकी जँघा और उसके पैरो से शूद्र निकले।" इस उद्घोषणा के बावजूद ऋग्वेदकाल में जाति प्रथा का पूर्ण विकास नहीं हुआ था, क्योंकि हम देखते हैं कि अन्तर्जातीय विवाह, व्यवसाय परिवर्तन और सहभोज पर कोई सामाजिक नियन्त्रण नहीं था।

प्रारम्भ में जिस वर्ण-व्यवस्था की स्थापना हुई, उसमें विभिन्न पेशे वालों की श्रेणियाँ मात्र थी। सामान्य जनता 'विशः' कहलाती थी। योद्धा और रथी 'क्षत्रिय' कहलाते थे तथा पुरोहित 'ब्राह्मण'। आगे यज्ञ का क्रिया-कलाप बहुत बढ़ जाने से ब्राह्मणों का स्थान और भी महत्त्वपूर्ण हो गया था। प्रारम्भ में सभी श्रेणियों के बीच परस्पर खान-पान होता था और वैवाहिक सम्बन्ध भी चलता था। समाज के विभाजन को ही लोग वर्ण-व्यवस्था भी कहते थे। पूर्व वैदिककाल में विवाह और भोजन से सम्बद्ध बन्धन नहीं थे और न ऊँच- नीच का भाव ही। विशेष भेद आर्यों और दासों का ही था। एक बात स्मरणीय है कि पुरुषसूक्त के अतिरिक्त ऋग्वेद में 'वैश्य' और 'शूद्र' का कहीं उल्लेख भी नहीं हुआ है। जहाँ तक ब्राह्मण-क्षत्रिय का प्रश्न है, पूर्ववैदिक काल में कोई भी अपने कर्म से इन श्रेणियों को प्राप्त कर सकता था। प्रारम्भ में आर्य और अनार्य दो वर्ण थे। दोनों में रंग का भेद था। चार वर्णों की उत्पत्ति को हम कर्ममूलक कह सकते हैं। पूर्व वैदिक कालीन कर्म परिवर्तनशील थे और इसीलिए वर्ण भी। धीरे-धीरे 'वर्ण' जन्मजात हो गया। ब्राह्मण को विद्वान और मनीषी कहा गया है। वशिष्ठ स्वयं तो ब्राह्मण थे, परन्तु उनके माता-पिता ब्राह्मण नहीं थे। इससे स्पष्ट है कि ब्राह्मण कर्मजात होते थे, जन्मजात नहीं। 'क्षत्रिय' शब्द वीरता का द्योतक था। देवापि और शान्तनु के उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि क्षत्रिय भी जन्मज न होकर कर्मज थे। व्यवसाय, कृषि और वाणिज्य के भार को वहन करने वाले लोग वैश्य कहलाते थे। पशुपालन वैश्य समुदाय का ही काम था। 'शूद्र' शब्द से कृष्णवर्ण के लोगों का तात्पर्य है। 'गौतम' ने शूद्रों को अनार्य कहा है और 'बौधायन' में कृष्णवर्ण। विजित अनार्य ही शूद्र की कोटि में रखे गए, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है।

वैदिक समाज की इकाई परिवार थी। परिवार पितृसत्तात्मक था। पिता या पितामह ही घर का प्रधान होता था। उसे गृहपति कहते थे। परिवार के सभी लोग उसकी प्रधानता मानते थे। 'गृहपति' का पद वंशानुगत था। कभी-कभी भाइयों में पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा भी होता था। सम्पत्ति का उत्तराधिकारी पुत्र होता था, पुत्री नहीं। सम्मिलित परिवार होने के नाते सब काम सामूहिक ढंग से होता था। सामूहिक उत्तरदायित्व का महत्त्व लोग समझते थे। स्वस्थ पारिवारिक जीवन की नींव पड़ चुकी थी। पति और पत्नी के अतिरिक्त परिवार में माता-पिता, भ्राता-भगिनी, पुत्र-पुत्री आदि भी रहते थे। पारस्परिक स्नेह का अभाव नहीं था, परन्तु यदा-कदा पारस्परिक स्वार्थों का टकराना अस्वाभाविक नहीं था। इन झगड़ों के चलते ही परिवार बिखर भी जाते थे। सम्मिलित परिवार के पिता के असीमित अधिकार थे, फिर भी वह परिवार की हित- साधना में सब कुछ करने को तैयार रहता था।

सामाजिक संस्कारों में विवाह एक महत्त्वपूर्ण संस्कार था। अतिप्राचीन काल में विवाह का बन्धन नहीं था और सब स्त्रियाँ अनावृत्त थी। दीर्घतमा ऋषि के समय तक यही दशा थी। दीर्घतमा ने ही विवाह का नियम जारी किया। अनावरण हटाने का श्रेय श्वेतकेतु औद्दालकि को भी दिया जाता है। विवाह संस्था में श्वेतकेतु ने कुछ सुधार किए, ऐसा अनुमान लगाया जाता है। धीरे-धीरे विवाह संस्था दृढ़ हो गई, फिर भी वह पत्थर की लकीर नहीं थी। बहुपत्नीत्व से भी वैदिक आर्य अपरिचित नहीं थे। एक विवाह साधारण नियम था। बाल विवाह का कहीं उदाहरण नहीं मिलता है। स्त्रियों को समाज में पूरी स्वतन्त्रता थी और वे प्रत्येक कार्य में पुरुषों का हाथ बँटाती थी। परदे का नाम भी नहीं था। वैदिक ऋषि ने तरुणी के प्राकृतिक सौन्दर्य की सराहना की है। ऋग्वेद उषा का वर्णन करते हुए बताया गया है कि यह नर्तकी की भाँति अपने नग्न स्तनों को हिलाती आती है। स्त्रियाँ स्वच्छन्द होकर विचरती थी और पूर्व वैदिक काल में उन पर विशेष अंकुश नहीं था। स्त्रियाँ ऊँची शिक्षा पाने के लिए स्वतन्त्र होती थीं। युवक-युवतियों को अपना साथी चुनने की पूरी स्वतन्त्रता थी। सामाजिक समागम और विनोद के स्थानों में उन्हें परस्पर परिचत और प्रेम करने की स्वतन्त्रता थी। विवाह का आदर्श उज्ज्वल और ऊँचा था। विवाह एक पवित्र और स्थायी सम्बन्ध माना जाता था। विधवाओं के फिर से विवाह करने में कोई रुकावट नहीं थी और वे प्रायः अपने देवर से विवाह करती थीं। दहेज प्रथा का भी उल्लेख मिलता है और कीमत लेकर लड़की देने का भी।

परिवार में पत्नी का अधिक महत्त्व था। उसमें सन्तति की विशेष कामना रहती थी। पुत्रों की उत्पत्ति केवल वंश को जीवित रखने के लिए ही नहीं, वरन् परिवार की आर्थिक समृद्धि, सैनिक बल और पितरों की आध्यात्मिक तृप्ति के लिए भी आवश्यक थी। जिस समय पुत्र उत्पन्न होता था, बड़ा आमोद-प्रमोद मनाया जाता था, किन्तु पुत्री की उत्पत्ति पर ऐसा नहीं होता था। फिर भी, कुछ स्त्रियों की गणना ऋषियों की सूची में की जाती है - घोषा, लोपामुद्रा और विश्ववारा। इन्होंने वेद की ऋचाओं की रचना की। जब तक पत्नी यज्ञ में सहयोग प्रदान नहीं करती थी, तब तक यज्ञ सम्पूर्ण नहीं माना जाता था। अनुलोम और प्रतिलोम विवाहों के उदाहरण भी वैदिक काल में मिलते हैं। सती-प्रथा का अभाव था। नियोग प्रथा प्रचलित थीं।

आमोद-प्रमोद के लिए आर्य लोग समनों और उत्सवों का संगठन करते थे। संगीत मनोविनोद का प्रमुख साधन था और इसमें भी नृत्य, गान और वाद्य प्रमुख थे। स्त्री और पुरुष समान रूप से नृत्य में भाग लेते थे। वीणा और करताल की लय के साथ ही नृत्य होता था। आर्यों का गान प्रेम तो उनके गेय ग्रन्थ सामवेद से ही स्पष्ट है। संगीत के अतिरिक्त घुड़दौड़, घुतक्रीड़ा, मल्लयुद्ध आदि भी मनोरंजन के साधन थे। आखेट का विशेष महत्त्व था ही। आर्य लोग जीवन के प्रति उदासीन नहीं थे। रथ-धावन अत्यधिक लोकप्रिय था और आगे चलकर यह 'वाजपेय' नामक यज्ञ का प्रधान भाग बन गया। वे लोग जीवन के आनन्द का वर्णन करना ही पसन्द करते थे और शत्रुओं की मृत्यु को छोड़कर शायद ही कभी मृत्यु का उल्लेख करते थे।

वेशभूषा पर भी उनका विशेष ध्यान रहता था। महोत्सवों में स्त्रियाँ सुसज्जित होकर सूर्य की किरणों- सी समुद्रभासित होती थीं। वैदिक पोशाक के तीन भाग थे अन्दर के वस्त्र को नीवी कहते थे, दूसरे वस्व को वास या परिधान और आच्छादन के लिए जो वस्त्र होता था, उसे अधीवास, अत्क या द्रापि कहते थे। पोशाकें विभिन्न रंगों की होती थी और हरिण के चमड़े तथा ऊन की बनती थी। कपड़ों पर जरी का काम किया होता था। स्वर्णाभूषण और मालाओं का भी व्यवहार होता था। उष्णीय का व्यवहार स्त्री और पुरुष दोनों ही करते थे। स्त्रियाँ वेणियाँ धारण करती थी। आभूषणों में हार, कवच, कुण्डल, केयूर, कंकण, नुपूर, अंगद, गजरे और कण्ठ थे। बालों में कंघी करने का प्रचलन था। सुगन्धित तेलों का भी प्रयोग किया जाता था। ब्रह्मचारी मृगचर्म का प्रयोग करते थे।

खान-पान बहुत सादा था। खेती की मुख्य उपज 'ब्रीही' और 'यव' थी, किन्तु 'यव' शब्द में गेहूँ भी सम्मिलित लगता है। दूध, घी, माँस और अनाज सादे रूप में मुख्य भोजन थे। आर्य लोग पूरे माँसाहारी थे। यद्यपि वे गाय को अधन्या समझने लग गए थे, फिर भी विवाह के समय या अतिथि के आने पर बैल अथवा बाँझ गाय को मारकर खिलाने-खाने की प्रथा प्रचलित थी। सोमरस तथा सुरा आर्यों का मुख्य पेय था।

उत्तर वैदिक कालीन सामाजिक जीवन - उत्तर वैदिक काल तक आते-आते पूर्व वैदिक कालीन समाज में कई तरह के परिवर्तन हुए। इसी काल में आर्यों ने मूलतः समाज संस्था की नींव डाली। इस काल में भी समाज का आधार परिवार संस्था ही थी जिसका प्रमुख पिता अथवा परिवार का कोई वरिष्ठ सदस्य होता था। इसी समय वर्ण-व्यवस्था परिपक्व रूप में स्थापित हुई तथा चारों वर्णों के कर्त्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख मिलने लगता है। यहीं नहीं चारों वर्णों के लिए अलग-अलग नियम भी बनाये जाने लगे, शिल्पियों को शूद्रों के समकक्ष मानने की कुप्रथा का आरम्भ इसी युग से हुआ। शूद्रों को अपने यज्ञ से वंचित किया गया। अग्नि को दी जाने वाली दूध की हवि शूद्र के स्पर्श से अपवित्र समझी जाने लगी। शूद्रों को हेय की दृष्टि से देखा जाता था। जहाँ एक ओर ब्राह्मण और क्षत्रिय विशेषाधिकार का उपभोग कर रहे थे, वहाँ दूसरी ओर वैश्य और शूद्र ऐसे अधिकारों से वंचित थे। उनके सम्बोधन के ढंग भी अलग थे। ये दोनों वर्गों के लोग शोषित थे। ब्राह्मणों का अधिकार और सम्मान बढ़ गया था।

जाति-परिवर्तन अब कठिन हो गया था। उच्च वर्ग के लोग अपने से नीची जाति में विवाह कर सकते थे परन्तु,नीची जाति के लोगों के लिए उच्च वर्गों में विवाह करना असम्भव था। यहाँ ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बीच संघर्ष का संकेत मिलता है, फिर भी उन दोनों का सम्बन्ध अपेक्षाकृत अच्छा ही कहा जाएगा। व्यापारी, रथनिर्माता, लोहार, बढ़ई, चमार, कर्मकार, मल्लाह आदि उपजातियों का उल्लेख भी इस युग में मिलता है किन्तु, इन लोगों का सामाजिक मूल्य दिनानुदिन घटता जा रहा था। व्रत्यों और निषादों का भी उत्तर-वैदिक कालीन साहित्य में उल्लेख मिलता है। 'उत्तरवैदिक काल' में वर्ण-व्यवस्था अपने निश्चित वर्ग- आकार और वर्ग-संघर्ष की ओर द्रुतगति से बढ़ती जा रही थी। श्रम-विभाजन से पेशेवर दल निर्मित हो गए। समाज में जैसे-जैसे ब्राह्मणों का महत्त्व बढ़ता गया, वर्णों का पारस्परिक सम्पर्क अश्रद्धा की दृष्टि से देखा जाने लगा। यदा-कदा पारस्परिक और सामाजिक सम्पर्क भी देखे जाते हैं, जैसे - ब्रह्मर्षि च्यवन ने क्षत्रिय सर्यात की पुत्री सुकन्या से विवाह किया, विदेह के जनक, काशी के अजातशत्रु और पंचाल के प्रवाहण जैबलि ने ब्रह्मज्ञान से ख्याति प्राप्त की और राजन्य देवापि ने अपने माई राजा शान्तनु के अश्वमेघ में प्रमुख पुरोहित का कार्य किया। विद्या का महत्त्व इस युग में काफी बढ़ गया था। पुरानी मान्यताएँ बड़ी तेजी से बदल रही थी।

इस काल में वर्णाश्रम व्यवस्था परिपक्व हुई। इसका आधार दृढ़ हो गया, अतः वर्णों का आधार कर्म न होकर जन्म हो गया। इस समय आर्यों पर आर्येतर जातियों का स्पष्ट प्रभाव पड़ा। उनमें वर्ण जन्म के आधार पर निश्चित होता था। इस काल में ऊँच-नीच की भावना जाग्रत होने लगी। आश्रम व्यवस्था की स्थापना भी इसी युग में पूर्णरूपेण हुई।

'अथर्ववेद' में स्पष्ट रूप से राजन्य, वैश्य, शूद्र और आर्य जैसे सामाजिक विभागों का उल्लेख है। 'वाजसनेयी संहिता' में ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और आर्य का उल्लेख मिलता है। इन चार वर्णों के अतिरिक्त इस काल में चाण्डाल, पौल्कस, निषाद, उगर, आयोगव, माधव, वैदेहक आदि जातियों का उल्लेख भी विभिन्न ग्रन्थों में मिलता है। आन्ध्र, पुण्ड्र, शबर, पुलिंद, मूतिव आदि अनार्य जातियों का उल्लेख भी तत्कालीन साहित्य में मिलता है। इन लोगों की गणना किस कोटि में हो, यह निश्चित रूप से कहना कठिन है, परन्तु इतना कहा जा सकता है कि इस काल में वर्गीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही थी।

उत्तरवैदिक काल में आर्यों का विस्तार हुआ और वे लोग जंगलों को साफ करते हुए आगे बढ़ते गए। जनसंख्या की वृद्धि के परिणामस्वरूप बड़े-बड़े ग्रामों और नगरों का विकास हुआ। इस युग में भी अधिकतर आर्य ग्रामों में ही संगठित थे। उनके सम्मिलित परिवारों का प्रमाण मिलता है। कच्ची और पक्की ईंटों से घर बनता था और उसमें मिट्टी और लकड़ी का भी व्यवहार होता था। घर में अग्निशाला, अतिथिशाला और पशुशाला की व्यवस्था थी। घर में पलंग, कुर्सी, बेंच, बर्तन, टोकरी, कलश, चाकू, चम्मच आदि उपभोग की वस्तुओं के होने का भी प्रमाण मिलता है।

शूद्रों और नारियों की अवस्था करीब-करीब एक जैसी थी। 'ऐतरेय ब्राह्मण' में कहा गया है कि शूद्र दूसरे का सेवक है, जिसका इच्छावश निष्कासन तथा वध किया जा सकता है। इस काल में नारियों को शिक्षा दी जाती थी। गार्गी, वाचक्रनवी और मैत्रेयी के दृष्टान्तों से यह स्पष्ट है। फिर भी नारियों की स्थिति विशेष स्पृहणीय नहीं थी। सम्पत्ति पर उनका अधिकार नहीं होता था। कन्या का जन्म ही दुःख का कारण समझा जाता था। 'ऐतरेय ब्राह्मण' में पुत्री को कृपण कहा गया है। बहुविवाह की प्रथा थी, किन्तु एकपतित्व को हम साधारण नियम मान सकते हैं। पुनर्विवाह या विधवा विवाह का प्रचलन भी था। सती प्रथा के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक आधार नहीं मिलता। यदा-कदा अन्तर्जातीय विवाह के उल्लेख मिलते हैं, फिर भी सजातीय विवाह की ही प्रधानता थी। इस काल में गोत्र का उदय हो चुका था। 'अथर्ववेद' के  अनुसार गोत्र का अर्थ सम्बन्धित व्यक्तियों का समूह है। सपिण्ड, सगोत्र और सप्रवर विवाहों का स्पष्ट निषेध सूत्रकाल में ही मिलता है। पर्दा-प्रथा, सती प्रथा जैसी कुप्रथाएँ नहीं थी। वे पति के साथ यज्ञों में भी सम्मिलित होती थीं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- ऐतिहासिक युग के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का परिचय दीजिए व भारत में उसके बाद विकसित होने वाली सभ्यता व संस्कृति को चित्रित कीजिए।
  3. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहाकार कल्हण व आर. सी. मजूमदार का परिचय दीजिए।
  4. प्रश्न- भारतीय ज्ञान प्रणाली के स्रोत पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- जदुनाथ सरकार, वी. डी. सावरकर, के. पी. जायसवाल का परिचय दीजिए।
  6. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार मृदुला मुखर्जी के बारे में बताइए।
  7. प्रश्न- भारत संस्कृति (भाषाओं) के ज्ञान से अवगत कराइये।
  8. प्रश्न- नृत्य व रंगमंच की भारतीय संस्कृति से अवगत कराइये।
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता से मगध राज्य तक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार विपिनचन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- मध्य पाषाण समाज और शिकारी संग्रहकर्ता पर टिप्पणी कीजिए।
  12. प्रश्न- ऊपरी पुरापाषाण क्रांति क्या थी?
  13. प्रश्न- प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- पाषाण युग की जीवनशैली किस प्रकार की थी?
  15. प्रश्न- के. पी. जायसवाल के विशिष्ट कार्यों से अवगत कराइये।
  16. प्रश्न- वी. डी. सावरकर के धार्मिक और राजनीतिक विचार से अवगत कराइये।
  17. प्रश्न- लोअर पैलियोलिथिक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं? 'हड़प्पा संस्कृति' के निर्माता कौन थे? बाह्य देशों के साथ उनके सम्बन्धों के विषय में आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के आर्थिक जीवन के विषय में विस्तारपूर्वक बताइये।
  21. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर-विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  28. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  30. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  31. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  35. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विनाश के क्या कारण थे?
  36. प्रश्न- लोथल के 'गोदी स्थल' पर लेख लिखो।
  37. प्रश्न- मातृ देवी की उपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- 'गेरुए रंग के मृदभाण्डों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- 'मोहन जोदडो' का महान स्नानागार' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  41. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  45. प्रश्न- वैदिक साहित्य के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- ब्रह्मचर्य आश्रम के कार्य व महत्व को समझाइये।
  47. प्रश्न- वानप्रस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  48. प्रश्न- सन्यास आश्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- मनुस्मृति में लिखित विवाह के प्रकार लिखिए।
  50. प्रश्न- वैदिक काल में दास प्रथा का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- पुरुषार्थ पर लघु लेख लिखिए।
  52. प्रश्न- 'संस्कार' पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- गृहस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  54. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- वैदिककाल में विवाह तथा सम्पत्ति अधिकारों की क्या स्थिति थी?
  57. प्रश्न- उत्तर वैदिककाल की राजनीतिक दशा का उल्लेख कीजिए।
  58. प्रश्न- विदथ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- ऋग्वेद पर टिप्पणी कीजिए।
  60. प्रश्न- आर्यों के मूल स्थान पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- 'सभा' के विषय में आप क्या जानते हैं?
  62. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  63. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न. बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
  67. प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
  71. प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए।
  74. प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- सुदर्शन झील पर टिप्पणी लिखिए।
  78. प्रश्न- अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि वह किस प्रकार सिंहासन पर बैठा था?
  79. प्रश्न- सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
  81. प्रश्न- अशोक के शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
  84. प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
  85. प्रश्न- सारनाथ स्तम्भ लेख पर टिप्पणी कीजिए।
  86. प्रश्न- बृहद्रथ किस राजवंश का शासक था और इसके विषय में आप क्या जानते हैं?
  87. प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में उल्लेखित विषयों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  91. प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
  94. प्रश्न- कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्य को समझाइए।
  95. प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  96. प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
  99. प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
  100. प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
  101. प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  107. प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
  109. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आपसूक्ष्म में बताइए।
  110. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  111. प्रश्न- मिहिरभोज की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न-
  114. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम के शासन-काल का विवरण दीजिए।
  115. प्रश्न- वत्सराज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास में नागभट्ट द्वितीय के स्थान का मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- मिहिरभोज की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार सत्ता का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों का विघटन पर प्रकाश डालिये।
  120. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए।
  121. प्रश्न- महेन्द्रपाल प्रथम कौन था? उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। उत्तर -
  122. प्रश्न- राजशेखर और उसकी कृतियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  123. प्रश्न- राज्यपाल तथा त्रिलोचनपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में प्रतिहारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  125. प्रश्न- कन्नौज के प्रतिहारों पर एक निबन्ध लिखिए।
  126. प्रश्न- प्रतिहार वंश का महानतम शासक कौन था?
  127. प्रश्न- गुर्जर एवं पतन का विश्लेषण कीजिये।
  128. प्रश्न- कीर्तिवर्मा द्वितीय एवं बादामी के चालुक्यों के अन्त पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- चालुक्य राज्य के अंधकार काल पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- पूर्वी चालुक्य शासकों ने कला और संस्कृति में क्या योगदान दिया है?
  131. प्रश्न- चालुक्य कौन थे? इनकी उत्पत्ति के बारे में बताइए।
  132. प्रश्न- वेंगी के पूर्व चालुक्यों पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- चालुक्यकालीन धर्म एवं कला का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- चालुक्यों की विभिन्न शाखाओं का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- चालुक्य संघर्ष के विषय में आप क्या जानते हैं?
  136. प्रश्न- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की शक्ति के प्रसार का विवरण दीजिए।
  137. प्रश्न- चालुक्यों की उपलब्धियों के महत्व का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चालुक्यों की शासन व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- चालुक्य- पल्लव संघर्ष का विवरण दीजिए।
  140. प्रश्न- परमारों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- राजा भोज के शासन काल में चतुर्दिक उन्नति हुई।
  142. प्रश्न- परमार नरेश वाक्पति II मुंज के शासन काल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  143. प्रश्न- राजा भोज के शासन प्रबंध के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइए।
  144. प्रश्न- परमार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए तथा इस वंश का पतन क्यों हुआ?
  145. प्रश्न- परमार साहित्य और कला की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- परमार वंश का संस्थापक कौन था?
  147. प्रश्न- मुंज परमार की उपलब्धियों का आंकलन कीजिए।
  148. प्रश्न- 'धारा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  149. प्रश्न- सीयक द्वितीय 'हर्ष' के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- सिन्धुराज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  151. प्रश्न- परमारों के पतन के कारण बताइए।
  152. प्रश्न- राजा भोज एवं चालुक्य संघर्ष का वर्णन कीजिये।
  153. प्रश्न- राजा भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
  154. प्रश्न- परमार इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
  155. प्रश्न- भोज परमार की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  156. प्रश्न- परमारों की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
  157. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  158. प्रश्न- अर्णोराज चाहमान के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  159. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए। मोहम्मद गोरी के हाथों उसकी पराजय के क्या कारण थे? उल्लेख कीजिए।
  160. प्रश्न- चाहमान कौन थे? विग्रहराज चतुर्थ के विजयों का वर्णन कीजिए।
  161. प्रश्न- चाहमान कौन थे?
  162. प्रश्न- विग्रहराज द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  163. प्रश्न- अजयराज चाहमान की उपलब्धियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  164. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  165. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  166. प्रश्न- पृथ्वीराज और जयचन्द्र की शत्रुता पर प्रकाश डालिये।
  167. प्रश्न- ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पृथ्वीराज रासो के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  168. प्रश्न- चाहमान वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  169. प्रश्न- चाहमानों के विदेशी मूल का सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  170. प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के चन्देलों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  171. प्रश्न- गोविन्द चन्द्र गहड़वाल की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  172. प्रश्न- गहड़वालों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  173. प्रश्न- जयचन्द्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  174. प्रश्न- अर्णोराज के राज्यकाल की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  175. प्रश्न- चाहमानों (चौहानों) के राजनीतिक इतिहास का वर्णन कीजिए।
  176. प्रश्न- ललित विग्रहराज नाटक पर नोट लिखिए।
  177. प्रश्न- चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय के तराइन युद्धों का वर्णन कीजिए।
  178. प्रश्न- चौहान वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  179. प्रश्न- सामंतवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  180. प्रश्न- सामंतवाद के पतन के कारण बताइए।
  181. प्रश्न- प्राचीन भारत में सामंतवाद की क्या स्थिति थी?
  182. प्रश्न- मौर्य प्रशासन और सामंतवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  183. प्रश्न-
  184. प्रश्न- वेदों की उत्पत्ति के विषय में बताइए। वेदों ने हमारे जीवन को किस प्रकार के ज्ञान दिये?
  185. प्रश्न- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए
  186. प्रश्न- हिन्दू वर्ग की जाति-व्यवस्था व त्योहारों के विषय में बताइए।
  187. प्रश्न- 'लिंगायत'' के बारे में बताइए।
  188. प्रश्न- हिन्दू धर्म के सुधारकों के विषय में बताइए।
  189. प्रश्न- हिन्दू धर्म में आत्मा से सम्बन्धित विचारों से अवगत कराइये।
  190. प्रश्न- हिन्दुओं के मूल विश्वासों से अवगत कराइए।
  191. प्रश्न- उपवास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  192. प्रश्न- हिन्दू धर्म में लोगों के गाय के प्रति कर्तव्य से अवगत कराइये।
  193. प्रश्न- हिन्दू धर्म में
  194. प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमण का वर्णन कीजिए।
  195. प्रश्न- मुहम्मद गोरी की भारत विजय के कारणों की सुस्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  196. प्रश्न- राजपूतों के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
  197. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  198. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
  199. प्रश्न- भारत पर मुहम्मद गोरी के आक्रमण के क्या कारण थे?
  200. प्रश्नृ- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी?
  201. प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
  202. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारत की आर्थिक स्थिति पर टिप्पणी लिखें।
  203. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारतीय शासकों के तुर्कों से पराजय के क्या कारण थे?
  204. प्रश्न- भारत में तुर्की राज्य स्थापना के क्या परिणाम हुए?
  205. प्रश्न- मुहम्मद गोरी का चरित्र-मूल्यांकन कीजिए।
  206. प्रश्न- अरबों की असफलता के क्या कारण थे?
  207. प्रश्न- अरब आक्रमण का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
  208. प्रश्न- तराइन के प्रथम युद्ध पर प्रकाश डालिए।
  209. प्रश्न- भारत पर तुर्कों के आक्रमण के क्या कारण थे?
  210. प्रश्न- महमूद गजनवी का आनन्दपाल पर आक्रमण का वर्णन कीजिये।
  211. प्रश्न- महमूद गजनवी का कन्नौज पर आक्रमण पर प्रकाश डालिये।
  212. प्रश्न- महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ का विध्वंस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। [
  213. प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमण के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  214. प्रश्न- भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामों पर टिप्पणी कीजिए।
  215. प्रश्न- मोहम्मद गोरी की विजयों के बारे में लिखिए।
  216. प्रश्न- भारत पर तुर्की आक्रमण के प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।

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